वर्तमान समय में हम सब देश की राजनीति में एक उथल पुथल देख रहे है । जहां भारत देश हिंदू राष्ट बनने की ओर जोर दे रहा है ? क्या यह समस्या उतनी बड़ी है जितनी आज़ादी के बाद भारत के सामने जो सामाजिक , आर्थिक, और राजनितिक समस्याए मुंह बाए खड़ी थी? दूसरे विश्व युद्ध के बाद जन्मे सभी देशों को विकास शील राष्ट्र या देश कहा जाता है। इन्हे अल्पविकसित देश कहकर भी शंबोधित किया जाता है।
आप सब राजनिति शब्द सुनकर चौक उठते है और मन में तरह तरह के ख्याल आपके मन को विचलित करने लगता है ।लोग राजनिति का मतलब सिर्फ़ एक चीज़ समझते अपना उल्लू सीधा करना। जबकि सरल शब्दों में राजनिति का अर्थ है । देश में उपलब्ध संसाधन का देश की जनता में समान रुप से वितरित करना हैं। जब भारत आजाद हुआ 15 augsut 1947 को देश के सामने कई समस्याएं खड़ी थी।
जिनमे सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक समस्याएं परमुख थी।
आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधान मंत्री पद को सम्भाल। तो उसमे तमाम ऐसी समस्याएं सामने खड़ी थी जो हर किसी के समझ के बाहर था । जैसे नन्हे जन्मे बच्चे की देख भाल की जाती और उसको सबसे ज़्यादा अच्छे तरीके से सहेज के रखने की होती है वैसे ही तमाम चीजें नेहरू के सामने खड़ी थीं।
सन 1950-51 में भारत का सकल राष्टीय उत्पाद मात्र 9503 करोड़ रूपये था। उस समय भारत की आबादी 36 करोड़ 9 लाख थी । और उस समय परती व्यक्ति आय वार्षिक आय 2640 रुपए थी। भारतीयों के भोजन में शाग सब्जी ,अंडा,मांस, मछली,दूध,और खाने पीने की चिकनाई का भारी अभाव था। शिक्षा की सुविधाएं बहुत थोड़े लोगो को उपलब्ध थी। 1951 में साक्षरता की दर मात्र 18.33% थी।
कमजोर औधोगिक ठांचा – ब्रिटेन में 19वी शताब्दी में ही औधौगिक क्रांति आ चुकी थी। 1914 से 1918 के दौरान भारतके लोहा इस्पात उद्योग , सूती वस्त्र उद्योग, पटसन उद्योग, चमड़ा उद्योग,कोयला खनन उद्योग और कागज़ उद्योग ने प्रथम युद्ध के दौरान तेजी से परगति किया । 1919 में विभन्न उद्योगों में लगे मजदूरों की संख्या लगभग 12लाख थी।
