
भारत के जंगल कान्हा गायब होते जा रहे हैं।
दुनिया में पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए जंगल न केवल मनुष्यो के लिए हितकारी है बल्की पशु पक्षी और अन्य जानवरों के लिए भी जीवन का स्रोत है। भारत में कभी घने जंगलों का जाल हुआ करता था, जो आज कन्ही विलुप्त होता जा रहा है। दुनिया और पर्यावरण के लिहाज़ से जंगल वर्षा ,नदिया ,और जल ,जीवन के लिए सब महत्वपूर्ण है। और प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने पर न केवल मानव जीवन का नास होगा, बल्कि पृथ्वी पर पाए जाने जीव जंतु का भी अंत हो जाएगा। 2019 में जब कोरोना ने दुनिया में अपने पैर पसारे तो, दुनिया ऑक्सीजन की कमी के कारण लाखों की संख्या में मनुष्यो की मृत्यु हो गई । लोग ऑक्सीजन के लिए इस अस्पताल से उस अस्पताल के चक्कर काट रहे थे । ऑक्सीजन के लिए, और उस समय दुनिया को ऑक्सीजन का महत्व समझ तो आया । किंतु उसको लेकर वो अब भी उतना संजीदा नजर नहीं आ रहे है और भारत में विकास के नाम और व्यापार के लिए बिना रोक टोक जंगल काटे जा रहे हैं।
भारत न केवल अपने ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जाना जाता है बल्कि यह अपने घने पर्यावरण और जंगल के लिए भी जाना जाता है। जहां विभिन्न प्रकार के फल औषधियां और मसाले पाए जाते है। जहां ये पशु पक्षी और अन्य जंगली जानवरों के साथ मनुष्यो को जीवन दान देते है वन्ही अब उनके जीवन पर खुद ही खंभीर संकट उत्पन्न हो गया है।
दुनिया के करीब 7 अरब से ज्यादा लोगों को प्राणवायु प्रदान करने वाले जंगल आज खुद अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। संसार में पौधों की 2,50,000 ज्ञात प्रजातियों में से 15,000 प्रजातियां भारत में मिलती हैं। जीव-जंतुओं की कुल 15 लाख प्रजातियों में से 75,000 प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं। पक्षियों की 1,200 प्रजातियां और 900 उप-प्रजातियां पाई जाती हैं। लेकिन अब कई पशु और पक्षियों की प्रजातियां लुप्त हो रही हैं। लकड़ी के वैध और अवैध कारोबार के चलते जंगल नष्ट होते जा रहे हैं। जंगलों की दुर्दशा के चलते शेर, चीते सहित अन्य कई जंगली जानवरों का अस्तित्व अब संकट में है।
भारत के जंगलों में शानदार हाथी की चिंघाड़, मोर का नाच, ऊंट की सैर, शेरों की दहाड़, लाखों पक्षियों की चहचहाहट सुनने और देखने को मिलेगी। भारत में जंगली जीवों की बहुत बड़ी संख्या है। यहां जंगली जीवों को देखने देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। भारत में 70 से अधिक राष्ट्रीय उद्यान और 500 से अधिक जंगली जीवों के अभयारण्य हैं इसके अतिरिक्त पक्षी अभयारण्य भी हैं। आओ जानते हैं भारत के कुछ प्रमुख जंगलों के बारे में।
1 कान्हा किसली (मध्यप्रदेश) : एशिया के सबसे सुंदर और खूबसूरत वन्यजीव रिजर्वों में से एक है कान्हा राष्ट्रीय उद्यान। खुले घास के मैदान यहां की विशेषता हैं। बांस और टीक के वृक्ष इसकी सुंदरता को और बढ़ा देते हैं। यहां काला हिरण, बारहसिंगा, सांभर और चीतलों को एकसाथ देखा जा सकता है। इसके अलावा यहां बाघ, तेंदुआ, चीतल, नीलगाय, जंगली सूअर, गौर, भैंसे, सियार आदि हजारों पशु और पक्षियों का झुंड है।
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान भारत के मध्यप्रदेश राज्य में स्थित है। यह मुख्यत: एक बाघ अभयारण्य है, जो 2051.74 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। मंडला और जबलपुर शहर से सड़क मार्ग द्वारा ‘कान्हा राष्ट्रीय उद्यान’ तक पहुंचा जा सकता है।
“मध्य प्रदेश का ये जंगल हमारे सबसे पसंदीदा कार्टून कैरेक्टर बचपन के मोगली का घर है।”
प्राकृतिक सुंदरता और वास्तुकला के लिए प्रसिद्घ कान्हा राष्ट्रीय उद्यान का नाम यहां की चिकनी मिट्टी के कारण पड़ा है जिसे स्थानीय भाषा में ‘कनहार’ कहा जाता है। एक और मान्यता यह है कि इस वन के पास एक गांव में कान्वा नाम के सिद्घपुरुष रहते थे। उन्हीं के नाम पर इस उद्यान का नाम ‘कान्हा’ रखा गया है। मध्यप्रदेश के मंडला के नजदीक के इस उद्यान से ही रूडयार्ड किपलिंग को ‘जंगल बुक’ लिखने की प्रेरणा मिली।
यह राष्ट्रीय उद्यान 1945 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। यह क्षेत्र घोड़े के खुर के आकार का है। सतपुड़ा पर्वत की घाटियों से घिरा यह क्षेत्र बेहद हरा-भरा है। इन पहाड़ियों की ऊंचाई 450 से 900 मीटर तक है। यह दो हिस्सों में विभक्त है- हेलन और बंजर क्षेत्र। 1879 से 1910 ईस्वी तक यह स्थान अंग्रेजों की शिकारगाह था।
1933 में इसे अभयारण्य के तौर पर स्थापित कर दिया गया तथा 1955 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया।
2 काजीरंगा राष्ट्रीय अभयारण्य, असम (1985) : काजीरंगा गुवाहाटी से 250 किलोमीटर पूर्व और जोरहट से 97 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान मध्य असम में 430 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला है। इसे यूनेस्को ने अपनी धरोहर में शामिल कर रखा है। यह उद्यान एक सींग वाले भारतीय गैंडे (राइनोसेरोस, यूनीकोर्निस) का निवास है।
काजीरंगा को वर्ष 1905 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। सर्दियों में यहां साइबेरिया से कई मेहमान पक्षी भी आते हैं। काजीरंगा में विभिन्न प्रजातियों के बाज, विभिन्न प्रजातियों की चीलें और तोते आदि भी पाए जाते हैं। 2012 में असम में आई भीषण बाढ़ के कारण इस उद्यान में 540 से ज्यादा जीवों की मौत हो गई थी। यहां बाढ़ का खतरा बना रहता है।
इस राष्ट्रीय उद्यान में बड़ी एलीफेंट ग्रास, मोटे वृक्ष, दलदली स्थान और उथले तालाब हैं। एक सींग वाला गैंडा, हाथी, भारतीय भैंसा, हिरण, सांभर, भालू, बाघ, चीते, सूअर, बिल्ली, जंगली बिल्ली, हॉग बैजर, लंगूर, हुलॉक गिब्बन, भेड़िया, साही, अजगर और अनेक प्रकार की चिड़िया, बत्तख, कलहंस, हॉर्नबिल, आइबिस, जलकाक, अगरेट, बगुला, काली गर्दन वाले स्टॉर्क, लेसर एडजुलेंट, रिंगटेल फिशिंग ईगल आदि बड़ी संख्या में पाए जाते हैं।
3 सुंदरवन राष्ट्रीय अभयारण्य, पश्चिम बंगाल (1987) : सुंदरवन अभयारण्य पश्चिम बंगाल (भारत) में खानपान जिले में स्थित है। इसकी सीमा बांग्लादेश के अंदर तक है। सुंदरवन भारत के 14 बायोस्फीयर रिजर्व में से एक बाघ संरक्षित क्षेत्र है। इस उद्यान को भी विश्व धरोहर में शामिल किया गया है।
कई दुर्लभ और प्रसिद्ध वनस्पतियों और बंगाल टाइगर के निवास स्थान सुंदरवन को ‘सुंदरबोन’ भी कहा जाता है, जो भारत तथा बांग्लादेश में स्थित विश्व का सबसे बड़ा नदी डेल्टा भी है। बंगाल की खाड़ी में हुगली नदी के मुहाने (शरत) से मेघना नदी के मुहाने (बांग्लादेश) तक 260 किमी तक विस्तृत एक व्यापक जंगली एवं लवणीय दलदली क्षेत्र, जो गंगा डेल्टा का निचला हिस्सा बनाता है, यह 100-130 किमी में फैला अंतर्स्थलीय क्षेत्र है। भारत तथा बांग्लादेश में यह जंगल 1,80,000 वर्ग किलोमीटर तक फैला है।
सुंदरवन नाम संभवत: ‘सुंदरी का वन’ से लिया गया है जिसका यहां पाए जाने वाले मूल्यवान विशालकाय मैंग्रोव से है। यहां बड़ी तादाद में सुंदरी पेड़ मिलते हैं जिनके नाम पर ही इन वनों का नाम सुंदर वन पड़ा है।
4 सरिस्का एवं रणथम्भौर (राजस्थान) : राजस्थान में दो नेशनल पार्क और एक दर्जन से अधिक अभयारण्य तथा दो संरक्षित क्षेत्र हैं। पुरानी अरावली पर्वतमाला के सूखे जंगलों में सरिस्का नेशनल पार्क एवं टाइगर रिजर्व स्थित है तो दूसरी ओर रणथम्भौर के जंगल।
सरिस्का नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व
सरिस्का को वर्ष 1955 में एक अभयारण्य घोषित किया गया था और 1979 में इसे प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत टाइगर रिजर्व बनाया गया था। यह पार्क जयपुर से मात्र 110 किमी और दिल्ली से 200 किमी की दूरी पर है। जंगल से भरी घाटी को उजाड़ पर्वतमालाओं ने घेर रखा है। पार्क 800 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है, जबकि 498 वर्ग किमी इसका मुख्य भाग है।
रणथम्भौर : रणथम्भौर राष्ट्रीय वन्यजीव उद्यान ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। जहां पहले आबादी से भरपूर मजबूत रणथम्भौर किला था। रणथम्भौर किला समुद्र की सतह से 401 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना है। इस किले के कारण ही इस जंगल को रणथम्भौर का जंगल कहा जाता है। यहां बाघ के अलावा तेंदुआ, हिरण, चीतल, नीलगाय, जंगली सूअर और कई तरह के पक्षी बड़ी संख्या में हैं।
सन् 1192 में पृथ्वीराज चौहान के पोते गोविंदा ने इस पर राज किया था। बाद में उसके बेटे बागभट्ट ने किले में बसे शहर को खूबसूरत बनाया। सन् 1282 में चौहान वंशीय राजा हमीर यहां सत्तारूढ़ थे। सन् 1290 में जलालुद्दीन खिलजी ने 3 बार आक्रमण कर इसे जीतने का प्रयास किया। बाद में 1 वर्ष तक घेरा डालकर 1301 में इसे जीता। हमीर की मौत के बाद चौहानों का राज खत्म हो गया। मुस्लिम विजेताओं ने किले की मजबूत दीवार को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया।
मालवा के शासकों ने 16वीं शताब्दी में अपना राज जमाया। राणा सांगा ने यहां रहकर अपनी फौज को मजबूत किया। राणा सांगा को हराने के लिए मुगलों ने यहां कई बार आक्रमण किए जिनमें कई बार राणा सांगा घायल हुए। उनकी पराजय के बाद यह किला मुगलों के अधीन हो गया।
5 गिर वन्यजीव अभयारण्य : गिर वन राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य, गुजरात राज्य व पश्चिम-मध्य भारत में स्थित है। 1424 वर्ग किलोमीटर में फैले इस अभयारण्य में शेर, सांभर, तेंदुआ और जंगली सूअर प्रमुखता से पाए जाते हैं। गिर वन राष्ट्रीय उद्यान में तुलसी-श्याम झरने के पास भगवान कृष्ण का एक छोटा सा मंदिर भी है।
जंगल के शेर के लिए अंतिम आश्रय के रूप में गिर का जंगल, भारत के महत्वपूर्ण वन्य अभयारण्यों में से एक है। गिर के जंगल को सन् 1965 में वन्यजीव अभयारण्य बनाया गया और 6 वर्षों बाद इसका 140.4 वर्ग किलोमीटर में विस्तार करके इसे राष्ट्रीय उद्यान के रूप में स्थापित कर दिया गया। जूनागढ़ नगर से 60 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में शुष्क झाड़ीदार पर्वतीय क्षेत्र में स्थित इस उद्यान का क्षेत्रफल लगभग 1,295 वर्ग किलोमीटर है।
यह सभी जंगल ,पहाड़ , कल कल बहती नदिया, झरने धरती के श्रृंगार है । इन सबके बिना धरती बंजर और बदसूरत लगने लगी । जिस तरह और जितनी तेज़ी से जंगल काटे जा रहे है विकास के नाम पर हम उतना ही खतरा मानव जीवन के लिए पैदा कर रहे है क्योंकि जिस तरह से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रहा है एक दिन सब कुछ जल मगन हो जाएगा अगर हमने समय रहते इनकी और ध्यान नहीं दिया तो हमे भारी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ेगा जैसे सुखा बाढ़ चक्रवात और कम वर्षा का होना हम जितना प्राकृतिक का दोहन करेंगे उतना ही प्राकृतिक अपदाओ का सामना करेंगे।
